आज के आधुनिक दौर में अक्सर सोशल मीडिया पर कई जुमले, हैश्टैग के रूप में प्रचलन में आ जाते हैं और हम सब कभी कभी उनका अर्थ बिना जानते हुए उन्हें प्रयोग में ले आते हैं।इसी श्रेणी में एक बहुचर्चित हैश्टैग हैं ‘फ़ैशन रेवोल्यूशन’ और ‘एथिकल फ़ैशन’; जिसके अनेक अर्थ और निष्कर्ष लोग निकालते हैं। कुछ का मानना है कि ये किसी नयी डिज़ाइन को फ़ैशन में लाने की मुहीम है, तो कई मानते हैं कि ये हैंडलूम को प्रमोट करने का साधन है।
फ़ैशन रेवोल्यूशन या फ़ैशन क्रांति कि शुरुआत हुई ढाका, बांग्लादेश में स्थित राणा प्लाज़ा गार्मेंट फ़ैक्टरी की दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद। 24 अप्रैल 2013 की सुबह 8 माले की ये पहले से झर झर इमारत ढह गयी और साथ ही ले गयी कई मासूम ग़रीब कारीगरों की जान। इस इमारत के मालिक को इसकी बुरी हालत के बारे में कई बार चेतावनी दी गयी थी लेकिन इस पर उसने कोई ध्यान नहीं दिया।इस घटना में 1134 कारीगरों की मृत्यु हुई और 2500 से अधिक लोग घायल हुए थे। ये विश्व में आज तक की सबसे बड़ी फ़ैशन सम्बंधी आपदा है, जिसके कारण विश्व के सभी जागरूक फ़ैशन अक्टिविस्टस एकजुट हुए जिससे फ़ैशन रेवोल्यूशन का जन्म हुआ। ‘मेड इन इंडिया’, ‘मेड इन चाइना’ या ‘मेड इन बांग्लादेश’ लिखे हुए टैग में छुपे हुए मतलब को आख़िरकार सबने भाप लिया और तब समझ आया कि विश्व में ख्याति प्राप्त बड़े-बड़े फ़ैशन ब्राण्ड का प्रोडक्शन एशिया में क्यों होता है, साथ ही ‘चीप लेबर’ या सस्ती कारीगरी की असली क़ीमत भी समझ आ गयी।
अफ़सोस है कि राणा प्लाज़ा जैसी भीषण घटना के बाद ही कुछ लोगों में जागरूकता आयी कि शायद जो व्यक्ति आपके चमचमाते कपड़े उच्चतर ब्राण्ड के लिए बनाते हैं उन कारीगरों की कार्यकारी परिस्थितियां बहुत कमज़ोर हैं।ऐसे अनेक आँकड़े है जो बताते हैं कि एशिया के कारीगरों की सालाना कमाई यू॰के॰ व यू॰एस॰ के कारीगरों की क्षमता में अत्यधिक कम है। इसलिए फ़ैशन रेवोल्यूशन टीम ने फ़ैशन इंडस्ट्री में कुछ ज़रूरी मापदंडों की स्थापना की। जिसमें सर्वप्रथम है ‘फ़ेयर वेजेज़’ यानी कारीगरों को उचित मजदूरी, स्वच्छ और सुरक्षित कार्य वातावरण। ये सुनिश्चित हो कि उनके स्वास्थ्य का ख़याल रखा जाए, किसी भी प्रकार का शोषण ना हो और वह एक ख़ुशहाल माहौल में काम कर सकें। अब कई बड़ी गार्मेंट कम्पनियाँ इन मापदंडों को प्रयोग में ला रहीं हैं। #whomademyclothes (मेरे कपड़े किसने बनायें हैं?) जैसे हैश्टैग इसी शृंखला में उपभोगताओं में जागरूकता लाने का काम कर रहे हैं। फ़ैशन को उसके सर्वाधिक व्यापक रूप में पहुँचाने के लिए आवश्यक है कि हम बुनकर से विक्रेता तक की जुड़ी हुई हर कड़ी पर ध्यान दें। यदि आपके द्वारा खरीदा गया सुंदर सस्ता वस्त्र किसी और के लिए महंगा पड़े तो ऐसे ग्लैमर, ऐसे फ़ैशन स्टेट्मेंट का क्या अर्थ? एथिकल फ़ैशन को अपनायें, सदैव ये प्रश्न करें कि आपकी जगह इस कपड़े की सही क़ीमत किसी और ने तो नहीं चुकाई है। अच्छा पहनें, सच्चा पहनें !